"भारत को भारत बनाना है एक ऐसा भारत, जो जीव, जगत और जगदीश्वर की भारतीय समझ (दर्शन) के अनुरुप हो। ऐसा भारत आर्थिक और सांस्कृतिक रुप से समृद्ध, शक्तिशाली और स्वावलंबी होगा। पार्टी एक ऐसे भारत के निर्माण हेतु वचनबद्ध होगी। यह सैद्धांतिक अवधारणा जिसमे "जनता की, जनता के द्वारा, जनता के लिए" कहा गया है, के अनुकूल व्यवस्था निर्माण हेतु पार्टी प्रतिज्ञाबद्ध होगी। स्वाभिमान पार्टी का लक्ष्य एक ऐसे जनतांत्रिक राज्य की स्थापना करना है, जिसमें किसी भी प्रकार के जाति, सम्प्रदाय अथवा लिंग के भेदभाव बिना प्रत्येक नागरिक को ईमान की रोटी और इज्जत की जिंदगी उपलब्ध हो। पार्टी का दृष्टिकोण आधुनिक और वैज्ञानिक होगा । भारतीय परम्परा और सांस्कृतिक मूल्यों के साथ दुनिया के अनुभव और ज्ञान का सामंजस्य बिठाकर देश को दुनिया की महान् शक्ति बनाने का प्रयत्न करना है। पार्टी भारत परस्त और गरीब परस्त नीतियों पर चलकर हर आम नागरिक के "हक और हित" को सर्वोच्च प्राथमिकता देगी। पार्टी के लिए राष्ट्रीय विकास का पैमाना केवल मानव केंद्रित न होकर प्रकृति केंद्रित होगा । केन्द्रीयकरण, व्यक्तिवाद, परिवारवाद, जातिवाद और बाजारीकरण की व्यवस्था को बदलकर विकेंद्रीकृत, विविधीकरण और स्थानिकीकरण की भारत परस्त व्यवस्था निर्माण करना ही ध्येय होगा।"
मानसिकता : वर्तमान परिवेश में सम्पूर्ण विश्व आधुनिकतावाद से ग्रसित है | देशों की सीमायें अर्थहीन सी हो गयी हैं | व्यापारतंत्र हर तंत्र पर हावी है | पूंजीवाद की पताका दिख रही है | राष्ट्रवाद अर्थहीन सा दिख रहा है किन्तु राष्ट्रवाद का विनाश संभव नहीं है | भारत में आज भी परिवार परंपरा है | विश्व एकल परिवार का अनुगामी दिख रहा है | समाज का सज्जन वर्ग असंगठित और उत्साह हीन है | भारत में भारतीय संस्कृति के मानने वालों को अपने ही देश में अपमानित होना पड़ रहा है | कई सरकारें आईं और गयी किन्तु संस्कृति के मूल्य आधारित प्रश्न हमेशा ही अनुत्तरित रहे |समाज के अबतक के नेतृत्वकर्ताओं में सच्चाई की कमी दिखाई देती है | समाज के बीच सत्य को स्पष्टता और प्रखरता से बताने वालों की भी कमी दिख रही है | भारतीय समाज व्यवस्था, राजनीती से संचालित नहीं होती है किन्तु वह भी मजबूरी में राजनीती और राजनीतिज्ञों की ओर ताकने को विवश की जा रही है | धर्म का सीधा अर्थ पंथ या मजहब हो चुका है | धर्म के नाम पर पाखंड का बोलबाला बढ़ रहा है | समाज में आदर्शों का भी अभाव दिख रहा है | धन की एन केन प्रकारेण उपलब्धता ही जीवन का अंतिम लक्ष्य स्थापित किया जा रहा है |
इन तीन शब्दों पर यदि ध्यान दें तो विकास का विशेषण हुवा "प्रकृति केंद्रित" | इसलिए सबसे पहले विकास यानी क्या ? यही स्पष्ट होना जरूरी हो गया है | जैसे आदमी है तो वजन बढ़ना, तब जबकि आदमी दुबला हो और कुछ मोटा हो जाये | लेकिन ज्यादा मोटा हो जाये तो ? यदि किसी को हांथी पांव हो जाय, फाइलेरिया हो जाय तो उसका बड़ा विकास हो गया .....ऐसा तो कोई नहीं कहेगा ? इसलिए विकास के सम्बन्ध में, जैसा वह स्वभाव में स्थित है अपने भाव में स्थित, "स्वस्थ" | मतलब स्वयं में स्थित रहे, तब तो स्वस्थ होगा | लेकिन यदि ऐसा न हो तो उसे कैसे विकास कहेंगे ? जब हम विकास की बात करते हैं तो हमारा अभिप्राय देश से और देशों से होता है | विकास शब्द से हमारा ताल्लुक कुछ राष्ट्रीय, सामाजिक, मानवीय विकास से होगा | अब तक विकास के मापक शब्दों के रूप में हमने कई शब्द सुन रखे हैं | जैसे पर कैपिटा इनकम, ह्यूमन डेवलपमेंट इंडेक्स, गरीबी रेखा आदि आदि | हमने ये शब्द दशकों से सुने हैं और सरकारों को इन्ही आधारों पर अब तक काम करते, चलते हुए देख रहे हैं | इन शब्दों को तथाकथित विकसित देशों ने अपने अनुरूप विकसित किया और प्रसारित प्रचारित किया |